लड्डुओं का नाम सुनते ही हम में से ज्यादातर लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। लड्डू चाहे बूंदी के हों या फिर बेसन के इनका मीठा स्वाद मानव को हमेशा से भाता रहा है। हिंदू धर्म में तो लड्डुओं का इतिहास काफी प्राचीन रहा है। ऐसे ही प्राचीन रसीले लड्डुओं का यदि स्वाद चखना चाहें तो एक बार ग्वालियर का रुख करना होगा।
ग्वालियर के नया बाजार में स्थित बहादुरा के लड्डुओं की चर्चा ग्वालियर ही नहीं पूरे देश में होती है। इन लड्डुओं के शौकीन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई लोग रहे हैं। कुछ लोग तो इन्हें विदेश में रह रहे परिवार जनों को भी मुख्य रूप से भेजते हैं।
बेहद नर्म और रसीले होते हैं ये लड्डू :
92 साल से नया बाजार में बन रहे बहादुरा के लड्डुओं की खासियत यह है कि इन्हें देसी घी से बनाया जाता है। लड्डुओं को बनाने के लिए चने से तैयार शुद्ध बेसन के घोल को गर्म देसी घी में एक बड़े चम्मच "झारा" से कढ़ाई में गिराया जाता है। देसी घी में बनी इन बूंदियों को तुरंत ही शक्कर की गर्म चाशनी में डुबो दिया जाता है। बाद में इन्हें एक बड़े बर्तन में निकाल कर इससे लड्डू तैयार किए जाते हैं।
इस दौरान बूंदी और चाशनी को आज भी कोयले की भट्टी पर ही पकाया जाता है। जो इनके पुराने स्वाद को बरकरार रखे हुए है। हालांकि इन लड्डुओं को गर्मा गर्म खाए जाने पर ही इसके बेहतरीन स्वाद का पता चलता है। बहादुरा के लड्डु बहुत ही नर्म और रसीले से होते हैं, जो इन्हें आम लड्डुओं से अलग करते हैं।
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बहादुर प्रसाद शर्मा ने डाली थी नींव :
दुकान आज भी अपने पुराने स्वरूप में ही है। अम्बिका प्रसाद के अनुसार आज से 92 साल पहले जिस जगह पर लड्डू बनते थे। आज भी उसी जगह पर बनते हैं और दुकान के अंदर भी उसी पुराने स्वरूप को बरकरार रखा गया है।
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कोई भी दिल्ली जाता तो अटल जी के लिए लड्डू ले जाता :
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