"कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों..." दुष्यंत कुमार साहब की ये पंक्तियां भोपाल में सीए की प्रैक्टिस कर रहे सीए मुकेश राजपूत पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। बचपन तंगहाली और दु:ख में बीता। बचपन में पिता की मार से इतना आहत हुए कि घर छोड़ दिया।
जिंदगी के शुरुआती दशक होटल पर चाय के कप धोते हुए निकाल दिए। लोगों की मार खाई और अपशब्द सुन शांत हुए, लेकिन मन में कुछ अलग कर गुजरने की चाह थी, इसलिए किताबों को अपना दोस्त बनाया। मुकेश भले ही नियमित छात्र के रूप में स्कूल न जा सकें हों, लेकिन किताबों की दोस्ती और ज्ञान को बटोरने की चाह के कारण आज वे चार्टर्ड एकाउंटेंट तो हैं ही। साथ ही एक मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक भी हैं। उनके जीवन के इस सफर के बारे में Agnito Today की उनसे विशेष बातचीत हुई। पेश है उनसे बातचीत के कुछ प्रमुख अंश...
(इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने 2020 में सीए मुकेश राजपूत को सम्मानित किया)
पारिवारिक कलह से तंग आकर छोड़ दिया घर :
मुकेश बताते हैं कि बचपन में उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इस कारण उन्हें अक्सर पिता के गुस्से का शिकार होना पड़ता था। एक बार पिता ने इतना मारा कि उनसे तंग आकर घर छोड़ दिया और गाड़ी में बैठकर भोपाल आ गए। इस दौरान कई अलग-अलग होटलों या अन्य प्रतिष्ठानों पर काम किया।
इसी दौरान मारवाड़ी रोड के व्यापारी वाटूमल वासवानी जी के यहां नौकरी करने लगे। इसी दौरान वासवानी ने उन्हें किसी काम से अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट के पास भेजा। चार्टर्ड एकाउंटेंट के पास पहुंच वहां के काम करने की शैली और आरामदायक ऑफिस को देख मन में सीए बनने का संकल्प ले लिया और इसी दिशा में प्रयास करना शुरू कर दिए।
जिज्ञासा सफलता की पहली सीढ़ी :
मुकेश का कहना है कि सीए मुकेश खरे से मिलने के बाद उनके मन में यह जिज्ञासा जागी की आखिर वे करते क्या हैं? इसी जिज्ञासा के कारण उन्होंने सीए के बारे में सबकुछ जाना और सीए बनने का संकल्प लिया। मुकेश आज हर छात्र से यही कहते हैं कि वे मन में सदैव कुछ नया जानने की इच्छा रखें, ताकि वे ज्ञान हासिल कर सकें। एक दिन हमें पता चलता है कि यही ज्ञान हमारी सफलता की पहली सीढ़ी है।
जिज्ञासा सफलता की पहली सीढ़ी :
मुकेश का कहना है कि सीए मुकेश खरे से मिलने के बाद उनके मन में यह जिज्ञासा जागी की आखिर वे करते क्या हैं? इसी जिज्ञासा के कारण उन्होंने सीए के बारे में सबकुछ जाना और सीए बनने का संकल्प लिया। मुकेश आज हर छात्र से यही कहते हैं कि वे मन में सदैव कुछ नया जानने की इच्छा रखें, ताकि वे ज्ञान हासिल कर सकें। एक दिन हमें पता चलता है कि यही ज्ञान हमारी सफलता की पहली सीढ़ी है।
यही कारण है कि आज मुकेश पूरे देश में मोटिवेशनल सेमिनार लेते हैं। छात्रों को अवसाद से निकालना और उन्हें सही मार्ग पर प्रेरित करना उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य है। साथ ही उन्होंने एक किताब सीए पास द रियल स्टोरी भी लिखी है। इस किताब में उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और लगातार प्रयत्न करते रहने की बात पर विशेष बल दिया है।
पांचवी के बाद दी सीधे दसवीं की परीक्षा :
पांचवी कक्षा की बाद मुकेश की पढ़ाई छूट गई थी, लेकिन सीए बनने के संकल्प ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसलिए मप्र ओपन स्कूल से पांचवीं के बाद सीधे 10वीं की परीक्षा दी। इसमें वे तीन बार असफल रहे, लेकिन चौथी बार उन्होंने 10वीं कक्षा को उत्तीर्ण कर लिया। साथ ही उनका संकल्प और ज्यादा मजबूत हो गया।
पांचवी कक्षा की बाद मुकेश की पढ़ाई छूट गई थी, लेकिन सीए बनने के संकल्प ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसलिए मप्र ओपन स्कूल से पांचवीं के बाद सीधे 10वीं की परीक्षा दी। इसमें वे तीन बार असफल रहे, लेकिन चौथी बार उन्होंने 10वीं कक्षा को उत्तीर्ण कर लिया। साथ ही उनका संकल्प और ज्यादा मजबूत हो गया।
वहीं सीए का एग्जाम क्लियर करने में भी मुकेश को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इस दौरान उन्होंने एक ही बात सीखी जो वे छात्रों से भी शेयर करते हैं कि मेहनत करते समय गलती कहां हो रही है। उस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है और अपने काम करने के तरीके को बदलने की भी जरूरत होती है। सीधे अर्थों में यदि आप वही कर रहे हैं, तो आपको रिजल्ट भी वही मिलेगा।
आत्महत्या करने की कर ली थी तैयारी :
मुकेश बताते हैं कि सीए की तैयारी करने के दौरान भी उन्हें लगातार असफलता मिल रही थी। लगातार 6 बार असफल होने के दौरान एक बार वे गहरे अवसाद में चले गए। इसी दौरान उन्होंने एक दिन सोचा की न तो मुझे मेरे माता पिता चाहते हैं। न ही दुनिया से कोई मान-सम्मान ही मुझे मिला। यहां तक कि जिसे चाहता था, वो भी मुझे छोड़कर जा चुकी है।
मुकेश बताते हैं कि सीए की तैयारी करने के दौरान भी उन्हें लगातार असफलता मिल रही थी। लगातार 6 बार असफल होने के दौरान एक बार वे गहरे अवसाद में चले गए। इसी दौरान उन्होंने एक दिन सोचा की न तो मुझे मेरे माता पिता चाहते हैं। न ही दुनिया से कोई मान-सम्मान ही मुझे मिला। यहां तक कि जिसे चाहता था, वो भी मुझे छोड़कर जा चुकी है।
इसी गहरे अवसाद में उन्होंने अपने खाने में जहर मिला लिया, लेकिन जैसे ही वे खाना खाने वाले थे। उनकी अंतरआत्मा ने उनके दिल में दस्तक दी और कहा कि मुकेश तू तो कायरों वाले काम कर रहा है। जीवन संघर्ष का नाम है, न की कायरता का। बस यहीं से उन्होंने ज्यादा मेहनत करना शुरू कर दी। इसके बाद सातवीं बार में उन्होंने सीए का एग्जाम क्लियर कर दिया।
(महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और अन्य गणमान्य लोगों के साथ मुकेश)
पता ही नहीं चला कि मैं पास हो गया :
मुकेश बताते हैं कि 20 जुलाई 2010 को सुबह 8 बजे मेरे एक मित्र का फोन आया कि मुकेश सीए का रिजल्ट आ गया है। मैं क्लियर तो नहीं कर पाया हूुं, लेकिन तुम्हारा रोल नंबर दे दो, मैं देखकर बता देता हूं। लेकिन जब सुबह 11 बजे तक भी मित्र का फोन नहीं आया तो मुझे लगा मैं इस बार भी सीए एग्जाम क्लियर नहीं कर पाया। मैं बहुत निराश हो गया था, मैंने मान लिया था कि आज मेरा सबकुछ खत्म हो गया। क्योंकि इसके बाद मैं फिर सीए के एग्जाम नहीं दे पाता।
मुकेश बताते हैं कि 20 जुलाई 2010 को सुबह 8 बजे मेरे एक मित्र का फोन आया कि मुकेश सीए का रिजल्ट आ गया है। मैं क्लियर तो नहीं कर पाया हूुं, लेकिन तुम्हारा रोल नंबर दे दो, मैं देखकर बता देता हूं। लेकिन जब सुबह 11 बजे तक भी मित्र का फोन नहीं आया तो मुझे लगा मैं इस बार भी सीए एग्जाम क्लियर नहीं कर पाया। मैं बहुत निराश हो गया था, मैंने मान लिया था कि आज मेरा सबकुछ खत्म हो गया। क्योंकि इसके बाद मैं फिर सीए के एग्जाम नहीं दे पाता।
लेकिन इसके बाद मैं ऑफिस आया और मेरे साथ काम करने वाली मेरी एक सहकर्मी ने मेरा रोल नंबर मांग। जिसके बाद मैं उनसे काफी झगड़ा। मैंने झगड़ते हुए रोल नंबर उनको फेंक कर दिया, लेकिन जैसे ही उन्होंने मेरा रोल नंबर सर्च किया। मैं सीए का एग्जाम पास कर चुका था, जिसके बाद मेरे दुख के आंसू खुशी के आंसुओं में बदल गए।